भारत का Dairy Business दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ उद्योग है, लेकिन मौजूदा India-USA Dairy Deal ने भारतीय किसानों के बीच चिंता बढ़ा दी है। अमेरिका की डेयरी कंपनियाँ अब भारतीय बाज़ार में प्रवेश करने की कोशिश कर रही हैं, जहाँ अब तक घरेलू किसान और सहकारी संस्थाएँ (जैसे अमूल) मजबूत स्थिति में रही हैं। समस्या यह है कि अमेरिकी डेयरी उत्पाद बड़े पैमाने पर, कम लागत पर और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी के सहारे तैयार होते हैं, जिससे भारतीय किसानों की आजीविका पर सीधा खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या विदेशी कंपनियों के दबाव और सस्ते आयात के चलते भारत का Dairy Business कमजोर हो जाएगा या फिर भारतीय किसान और सहकारी संस्थाएँ मिलकर इस चुनौती का सामना कर पाएँगे?
आइये देखें कि भारतीय-अमेरिका डेयरी व्यापार समझौते से भारतीय डेयरी व्यवसाय क्यों ध्वस्त हो जाएगा।

मैं आपको बताता हूँ कि भारतीय डेयरी व्यवसाय भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ क्यों है
भारत के किसानों के लिए Dairy Business केवल आय का एक साधन नहीं बल्कि उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी और आर्थिक स्थिरता का महत्वपूर्ण आधार है। भारत में लगभग 7 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवार डेयरी से जुड़े हुए हैं और इनमें से ज़्यादातर छोटे और सीमांत किसान हैं जिनके पास 2 से 5 पशु होते हैं। खेती से होने वाली आय मौसम, फसल की पैदावार और बाज़ार पर निर्भर रहती है, लेकिन दूध उत्पादन रोज़ाना नकद कमाई देता है। यही कारण है कि डेयरी खेती को किसानों की “नियमित आय का स्रोत” माना जाता है।
किसानों की दुग्ध सहकारी समितियाँ जैसे अमूल, पराग, सुधा आदि, सीधे किसानों से दूध खरीदकर उन्हें उचित दाम उपलब्ध कराती हैं। इससे बिचौलियों की भूमिका कम होती है और किसान को स्थिर बाज़ार मिलता है। इसके अलावा, डेयरी किसानों के लिए रोजगार का स्थायी साधन भी है, क्योंकि इसमें पुरुषों के साथ-साथ महिलाएँ भी सक्रिय रूप से जुड़ी रहती हैं।
भारत में डेयरी केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि पोषण और सामाजिक सुरक्षा का भी अहम हिस्सा है। किसान दूध बेचकर बच्चों की पढ़ाई, घर का खर्च और खेती के लिए पूँजी का प्रबंध करते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि भारतीय किसानों की रीढ़ Dairy Business ही है, और किसी भी विदेशी प्रतिस्पर्धा या आयात नीति का सबसे बड़ा असर इन्हीं किसानों पर पड़ता है।
नीचे दी गई केस स्टडी पढ़ें
मान लीजिए, एक छोटे किसान रमेश के पास गाँव में सिर्फ़ 4 गायें हैं। ये गायें औसतन 10–12 लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं। इसका मतलब है कि रमेश को रोज़ लगभग 40–45 लीटर दूध मिल जाता है।
अब अगर रमेश यह दूध अपनी नज़दीकी दुग्ध सहकारी समिति (जैसे अमूल या पराग) को बेचता है तो उसे औसतन ₹35–40 प्रति लीटर का भाव मिल जाता है। यानी रमेश को रोज़ लगभग ₹1,400–1,600 रुपये की आमदनी सिर्फ़ दूध बेचने से हो जाती है।
महीने के हिसाब से यह आय लगभग ₹40,000–45,000 रुपये तक पहुँच सकती है।
👉 इस आमदनी से रमेश अपने परिवार का रोज़ाना का खर्च जैसे –
बच्चों की पढ़ाई की फ़ीस
घर का राशन
बिजली-पानी का बिल
पशुओं का चारा और दवा
खेती के लिए बीज और खाद
आसानी से निकाल लेता है। सबसे बड़ी बात यह है कि दूध रोज़ बिकता है और उसे रोज़ कैश इनकम मिलती रहती है, जबकि खेती की कमाई साल में केवल दो या तीन बार ही होती है।
यानी, सिर्फ़ 4 गायों के छोटे से Dairy Business से भी एक किसान अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर सकता है और खेती के साथ-साथ एक स्थायी आय का सहारा पा सकता है।
ग्रामीण भारत के लिए Dairy Business किसी रीढ़ (Backbone) से कम नहीं है, क्योंकि यह न केवल किसानों की आय का स्थायी साधन है, बल्कि रोजगार, पोषण और सामाजिक सुरक्षा से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। आइए समझते हैं कि यह क्यों भारत के गाँवों की जीवनरेखा है:
1. नियमित आय का साधन
खेती से होने वाली कमाई मौसम और पैदावार पर निर्भर करती है, लेकिन दूध उत्पादन रोज़ाना होता है। किसान सुबह-शाम दूध बेचकर तुरंत नकद आय प्राप्त करता है। यही नियमित आमदनी उसके परिवार के खर्च, बच्चों की पढ़ाई और खेती के लिए पूँजी का सहारा बनती है।
2. छोटे किसानों का सहारा
भारत में ज़्यादातर किसान छोटे और सीमांत हैं जिनके पास 1-2 एकड़ ज़मीन होती है। ऐसे किसान फसल से उतनी आय नहीं कमा पाते, लेकिन 2-5 गाय या भैंस पालकर वे हर महीने 20–30 हज़ार रुपये तक की स्थायी कमाई कर लेते हैं।
3. महिला सशक्तिकरण
गाँवों में डेयरी का बड़ा हिस्सा महिलाएँ संभालती हैं – जैसे पशुओं को चारा देना, दुहाई करना, और दूध पहुँचाना। इससे महिलाओं की आय में योगदान बढ़ता है और वे आर्थिक रूप से मज़बूत होती हैं।
4. रोजगार और आत्मनिर्भरता
डेयरी ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक स्वरोज़गार पैदा करती है। किसान, पशुपालक, दूध इकट्ठा करने वाले, परिवहन करने वाले और डेयरी उत्पाद बनाने वाले – सभी को रोज़गार मिलता है।
5. पोषण और सुरक्षा
डेयरी केवल आय का स्रोत ही नहीं है बल्कि परिवार के लिए पोषण का भी आधार है। दूध, दही, घी और पनीर गाँवों में पोषण का अहम हिस्सा हैं।
👉 यही कारण है कि कहा जाता है कि भारत के ग्रामीण जीवन और किसानों की आर्थिक मजबूती की रीढ़ वास्तव में Dairy Business ही है।
अब मैं आपको यूएसए डेयरी बिजनेस के बारे में बताता हूं
अमेरिका का Dairy Business (डेयरी उद्योग) दुनिया के सबसे बड़े और आधुनिक डेयरी उद्योगों में से एक माना जाता है। यह न केवल अमेरिका की घरेलू ज़रूरतों को पूरा करता है बल्कि विश्व स्तर पर दूध और डेयरी उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक (Exporter) भी है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
1. अमेरिका का दूध उत्पादन
अमेरिका दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है (भारत के बाद)।
यहाँ दूध उत्पादन मुख्य रूप से गायों पर आधारित है, जबकि भारत में गाय और भैंस दोनों का योगदान होता है।
अमेरिका के फ़ार्म बहुत बड़े पैमाने पर होते हैं, जहाँ हज़ारों की संख्या में गायें पाली जाती हैं।
2. आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
अमेरिका के डेयरी फ़ार्म पूरी तरह मशीनीकृत और हाई-टेक हैं।
ऑटोमेटिक मिल्किंग मशीन, कंप्यूटराइज्ड फ़ीड मैनेजमेंट, और क्वालिटी कंट्रोल सिस्टम के ज़रिए दूध निकाला और स्टोर किया जाता है।
पशुओं के लिए संतुलित आहार और पोषण प्रबंधन वैज्ञानिक तरीक़े से किया जाता है।
3. प्रमुख डेयरी उत्पाद
अमेरिका केवल दूध उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ दूध से बने कई वैल्यू-एडेड उत्पादों का उत्पादन और निर्यात होता है:
Cheese (चीज़) – अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा चीज़ उत्पादक है।
Butter (मक्खन)
Yogurt (दही/योगर्ट)
Whey Protein (व्हे प्रोटीन) – जिसे स्पोर्ट्स और हेल्थ इंडस्ट्री में इस्तेमाल किया जाता है।
Milk Powder और Ice Cream
4. निर्यात (Export) पर फोकस
अमेरिका का डेयरी उद्योग घरेलू उपभोग के साथ-साथ निर्यात पर भी आधारित है।
चीन, मैक्सिको, कनाडा, फिलीपींस, इंडोनेशिया जैसे देश अमेरिका से बड़े पैमाने पर डेयरी उत्पाद आयात करते हैं।
विशेष रूप से चीज़ और व्हे प्रोटीन अमेरिका की सबसे बड़ी ताक़त हैं।
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USA Dairy Business को सरकार से क्या लाभ मिलते हैं?
अमेरिका का Dairy Business इतना मज़बूत इसलिए भी है क्योंकि उसे अमेरिकी सरकार की तरफ़ से कई तरह के लाभ (Benefits) और नीतिगत सहूलियतें मिलती हैं। ये लाभ किसानों से लेकर बड़े डेयरी कॉरपोरेट तक को मिलते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं:
1. सब्सिडी (Subsidy) और आर्थिक मदद
अमेरिकी सरकार डेयरी किसानों को चारा, फ़ीड और उत्पादन लागत पर सब्सिडी देती है।
दूध के दाम गिरने पर सरकार किसानों को प्रत्यक्ष आर्थिक मदद (Direct Payments) भी करती है ताकि उनका नुकसान कम हो।
2. बीमा योजनाएँ (Insurance Schemes)
अमेरिका में Dairy Margin Coverage (DMC) Program जैसी सरकारी योजनाएँ हैं।
इसमें किसानों को यह सुरक्षा मिलती है कि अगर दूध की कीमत घट जाए या चारे की कीमत बढ़ जाए तो नुकसान की भरपाई सरकार करेगी।
3. निर्यात में सहयोग
अमेरिकी सरकार अपने डेयरी उद्योग को अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में बढ़ावा देने के लिए ट्रेड एग्रीमेंट करती है।
US Dairy Export Council और सरकारी एजेंसियाँ मिलकर अमेरिकी चीज़, मक्खन, और व्हे प्रोटीन को दुनिया भर में बेचने में मदद करती हैं।
कई बार सरकार निर्यातकों को सब्सिडी और टैक्स रियायतें भी देती है।
4. रिसर्च और तकनीकी सहयोग
अमेरिकी सरकार डेयरी सेक्टर में नई तकनीक, ब्रीडिंग, एनिमल हेल्थ और न्यूट्रीशन पर लगातार रिसर्च को फंड करती है।
विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों को बड़े पैमाने पर अनुदान दिया जाता है ताकि दूध उत्पादन बढ़ाने के नए तरीके खोजे जा सकें।
5. बड़े पैमाने की खेती को बढ़ावा
सरकार कानूनी और वित्तीय ढील देती है जिससे बड़े डेयरी फ़ार्म (हज़ारों गायों वाले) आसानी से चल सकें।
सस्ती ब्याज दरों पर ऋण और टैक्स में छूट देकर कॉर्पोरेट स्तर पर डेयरी फ़ार्मिंग को प्रोत्साहित किया जाता है।
6. पर्यावरण और मानक
हालांकि पर्यावरण नियम सख़्त हैं, लेकिन सरकार डेयरी फ़ार्मों को टेक्नोलॉजी अपग्रेड करने के लिए फंड देती है।
इससे वे कार्बन उत्सर्जन कम करने और वेस्ट मैनेजमेंट में निवेश कर पाते हैं।
कुल मिलाकर, अमेरिकी सरकार का पूरा सिस्टम Dairy Business को एक इंडस्ट्री और एक्सपोर्ट हब मानकर काम करता है। यही कारण है कि अमेरिकी डेयरी कंपनियाँ सस्ते दामों पर बड़े पैमाने पर उत्पादन करके वैश्विक बाज़ार में दबदबा बना पाती हैं।
अमेरिका को अपने दूध और डेयरी उत्पादों का निर्यात (Export) क्यू करना पड़ता है
अमेरिका को अपने दूध और डेयरी उत्पादों का निर्यात (Export) इसलिए करना पड़ता है क्योंकि उनका उत्पादन उनकी घरेलू खपत (Consumption) से कहीं ज़्यादा होता है। आइए विस्तार से समझते हैं:
1. उत्पादन ज़्यादा, खपत कम
अमेरिका दूध उत्पादन में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।
वहाँ की गायें औसतन बहुत अधिक दूध देती हैं (25–35 लीटर प्रतिदिन), इसलिए उत्पादन ज़्यादा होता है।
लेकिन अमेरिका की आबादी भारत जैसी बड़ी नहीं है, यानी वहाँ दूध पीने वाले लोग कम हैं।
👉 नतीजा यह होता है कि उत्पादन खपत से बहुत अधिक हो जाता है।
2. उपभोक्ता आदतें (Consumer Habits)
अमेरिका में लोग दूध सीधे पीने से ज्यादा Cheese, Butter, Ice-Cream, Yogurt और Whey Protein के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
दूध की सीधी खपत सीमित है, जबकि उत्पादन इतना बड़ा है कि केवल घरेलू खपत से उसका उपयोग नहीं हो सकता।
3. वैश्विक बाज़ार में कमाई
अमेरिका अपने डेयरी उद्योग को एक एक्सपोर्ट-ओरिएंटेड इंडस्ट्री की तरह चलाता है।
जब वे अतिरिक्त दूध और उससे बने उत्पाद दूसरे देशों को बेचते हैं तो उन्हें डॉलर में भारी कमाई होती है।
चीज़ और व्हे प्रोटीन अमेरिका के लिए सबसे बड़े निर्यात उत्पाद हैं।
4. किसानों को नुकसान से बचाना
अगर अमेरिका सिर्फ घरेलू खपत पर निर्भर हो तो अतिरिक्त दूध बर्बाद हो जाएगा और किसानों को नुकसान होगा।
सरकार और कंपनियाँ इस दूध को एक्सपोर्ट करके किसानों को बेहतर दाम दिलवाती हैं।
5. राजनीतिक और आर्थिक रणनीति
डेयरी उत्पादों के निर्यात से अमेरिका अन्य देशों के साथ व्यापारिक दबाव और संबंध मज़बूत करता है।
जैसे ही कोई देश अमेरिकी दूध या डेयरी उत्पाद खरीदता है, वह लंबे समय तक उस पर निर्भर हो जाता है।
अमेरिका दूध का अधिक उत्पादन करता है, लेकिन उसकी घरेलू मांग कम है। इसलिए वह दूध और डेयरी उत्पादों को दूसरे देशों में बेचकर किसानों को बचाता है, विदेशी मुद्रा कमाता है और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में अपनी पकड़ मज़बूत करता है।
India-USA Dairy Deal से India के Dairy Business में क्या असर होगा या USA को क्या फ़ायदा है?
India–USA Dairy Deal का असर दोनों देशों के लिए अलग-अलग तरह से पड़ेगा।
भारत के मार्केट पर असर
भारतीय किसानों पर दबाव
भारत का डेयरी सेक्टर छोटे किसानों और सहकारी समितियों (जैसे अमूल, पराग, सुधा) पर आधारित है।
अगर अमेरिकी डेयरी उत्पाद सस्ते दामों पर भारत आएंगे, तो भारतीय किसान अपने दूध का उचित दाम नहीं ले पाएंगे।
भैंस के दूध पर संकट
भारत में दूध का बड़ा हिस्सा भैंसों से आता है, जो ज़्यादा फैट वाला और पौष्टिक माना जाता है।
अमेरिकी गाय के दूध (A1 Milk) से बने सस्ते उत्पाद भारतीय बाज़ार में उपलब्ध होंगे तो भैंस के दूध की मांग घट सकती है।
रोज़गार और महिला सशक्तिकरण पर असर
भारत के गाँवों में लाखों महिलाएँ डेयरी से जुड़ी हैं। अगर डेयरी कमजोर होती है तो उनका रोज़गार और आय प्रभावित होगी।
स्वदेशी बनाम विदेशी टकराव
भारत की ब्रांडेड सहकारी समितियों की पकड़ कमजोर हो सकती है और विदेशी कंपनियाँ बाज़ार पर हावी हो सकती हैं।
अमेरिका को क्या फ़ायदा होगा
अतिरिक्त दूध और उत्पादों की खपत
अमेरिका अपने अतिरिक्त दूध और उससे बने उत्पाद (Cheese, Butter, Whey Protein) को भारत जैसे बड़े उपभोक्ता देश में बेच सकेगा।
नया और बड़ा बाज़ार
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उपभोक्ता देश है।
यहाँ अमेरिका को करोड़ों उपभोक्ताओं का नया बाज़ार मिलेगा।
आर्थिक और राजनीतिक बढ़त
डेयरी एक्सपोर्ट से अमेरिका को अरबों डॉलर की कमाई होगी।
साथ ही, भारत को अपने उत्पादों पर निर्भर बनाकर अमेरिका राजनीतिक और आर्थिक दबाव भी बना सकेगा।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूती
चीन और यूरोप से मुकाबला करने के लिए अमेरिका को भारत जैसा विशाल बाज़ार मिलना उसके लिए रणनीतिक जीत होगी।
India-USA Trade Deal में क्या समस्या है?
India–USA Trade Deal, खासकर Dairy Sector को लेकर, कई बड़ी समस्याएँ और मतभेद सामने आते हैं।
1. धार्मिक और सांस्कृतिक समस्या
भारत और अमेरिका के बीच डेयरी व्यापार में सबसे बड़ी बाधा धार्मिक और सांस्कृतिक समस्या है। भारत में गाय को माता का दर्जा दिया जाता है और उसका दूध केवल भोजन ही नहीं बल्कि धार्मिक आस्था और परंपराओं से भी जुड़ा हुआ है। पूजा-पाठ से लेकर संस्कारों तक में गाय का दूध, दही और घी पवित्र माना जाता है। यही कारण है कि भारतीय उपभोक्ता दूध को सात्त्विक और शुद्ध मानकर ही ग्रहण करते हैं। दूसरी ओर, अमेरिका के डेयरी उद्योग में गायों को दिए जाने वाले चारे में अक्सर पशु-आधारित तत्व (जैसे बोन मील, ब्लड मील या फिश मील) मिलाए जाते हैं ताकि दूध उत्पादन अधिक हो सके। भारतीय दृष्टिकोण से यह तरीका अस्वीकार्य है, क्योंकि इससे दूध की शुद्धता पर सवाल खड़े होते हैं और धार्मिक भावनाएँ आहत होती हैं। यदि ऐसे उत्पाद भारतीय बाज़ार में आते हैं तो उपभोक्ता उन्हें अस्वीकार कर सकते हैं और यह बड़े सामाजिक व राजनीतिक विवाद को जन्म दे सकता है। यही कारण है कि भारत ने हमेशा अमेरिका से यह माँग की है कि उनके डेयरी उत्पादों में उपयोग होने वाले चारे के बारे में स्पष्ट प्रमाण दिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि वह पूरी तरह शाकाहारी हो। इस सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनशीलता की वजह से ही India–USA Dairy Deal आज भी सबसे विवादित विषयों में से एक बनी हुई है।
2. सेफ़्टी और क्वालिटी मानक
अमेरिका और भारत के बीच डेयरी व्यापार में दूसरा बड़ा विवाद सेफ़्टी और क्वालिटी मानकों को लेकर है। भारत में उपभोक्ता दूध को प्राकृतिक, शुद्ध और पौष्टिक मानते हैं, जबकि अमेरिकी डेयरी उद्योग में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीक, हार्मोन इंजेक्शन (जैसे rBGH) और जेनेटिकली मॉडिफ़ाइड (GMO) चारा का उपयोग किया जाता है। इन तकनीकों से भले ही दूध की मात्रा बढ़ जाती है, लेकिन भारत में इसके स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों को लेकर चिंताएँ गहरी हैं। भारतीय उपभोक्ता GMO फ़ीड और हार्मोन से जुड़े दूध को “कृत्रिम” और “हानिकारक” मानते हैं, क्योंकि इससे कैंसर, हार्मोनल असंतुलन और बच्चों की ग्रोथ पर असर जैसी आशंकाएँ जुड़ी रहती हैं। इसके अलावा, अमेरिका में बड़े पैमाने पर औद्योगिक डेयरी फ़ार्म चलते हैं जहाँ दूध के प्रोसेसिंग और प्रिज़र्वेशन के लिए कई तरह के रसायन और एडिटिव्स का इस्तेमाल होता है। भारत का पारंपरिक डेयरी मॉडल, जो ज्यादातर छोटे किसानों और सहकारी समितियों पर आधारित है, इन चीज़ों से मुक्त है और इसलिए उपभोक्ताओं का भरोसा अधिक है। यही कारण है कि भारत अमेरिकी डेयरी उत्पादों को बिना कठोर सेफ़्टी और क्वालिटी सर्टिफ़िकेशन के बाज़ार में आने की अनुमति नहीं देना चाहता। इस मानक को लेकर दोनों देशों में अब तक सहमति नहीं बन पाई है, और यह डील की सबसे बड़ी अड़चन मानी जाती है।
3. छोटे किसानों पर असर
भारत और अमेरिका के बीच डेयरी व्यापार समझौते का सबसे गंभीर असर भारत के छोटे किसानों पर पड़ सकता है। भारत का डेयरी मॉडल मुख्य रूप से छोटे और सीमांत किसानों पर आधारित है, जिनके पास केवल 2 से 5 गाय या भैंस होती हैं और वे रोज़ाना 20–40 लीटर दूध बेचकर अपने परिवार का खर्च चलाते हैं। इस मॉडल में सहकारी समितियाँ, जैसे अमूल और पराग, किसानों से सीधे दूध खरीदकर उन्हें स्थायी आय और बाज़ार उपलब्ध कराती हैं। दूसरी ओर, अमेरिकी डेयरी उद्योग बड़े पैमाने पर काम करता है जहाँ एक फ़ार्म में हज़ारों गायें होती हैं और उत्पादन लागत बहुत कम पड़ती है। यदि ऐसे सस्ते अमेरिकी डेयरी उत्पाद भारतीय बाज़ार में आने लगते हैं, तो भारतीय किसानों को अपने दूध का उचित दाम नहीं मिल पाएगा। नतीजतन, उनकी नियमित आय घट जाएगी और उनकी आजीविका पर सीधा संकट आ जाएगा। खासतौर पर ग्रामीण महिलाएँ, जो डेयरी व्यवसाय में सक्रिय भूमिका निभाती हैं, आर्थिक रूप से प्रभावित होंगी। इस प्रकार, India–USA Dairy Deal भारतीय छोटे किसानों की आर्थिक सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।
4. टैरिफ़ और आयात शुल्क (Import Duty)
भारत और अमेरिका के बीच डेयरी व्यापार में एक और बड़ी समस्या टैरिफ़ और आयात शुल्क (Import Duty) को लेकर है। भारत लंबे समय से अपने किसानों और घरेलू डेयरी उद्योग की रक्षा करने के लिए अमेरिकी डेयरी उत्पादों पर ऊँचे आयात शुल्क लगाता रहा है। उदाहरण के लिए, चीज़, दूध पाउडर और व्हे प्रोटीन जैसे उत्पादों पर भारत में भारी ड्यूटी ली जाती है ताकि विदेशी कंपनियाँ आसानी से बाज़ार पर कब्ज़ा न कर सकें। दूसरी ओर, अमेरिका का कहना है कि भारत के ये ऊँचे टैरिफ़ ट्रेड बैरियर हैं और वे अमेरिकी कंपनियों को भारत जैसे बड़े बाज़ार तक पहुँचने से रोकते हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत आयात शुल्क को कम करे, ताकि उसके सस्ते और बड़े पैमाने पर बने डेयरी उत्पाद भारत में आसानी से बिक सकें। लेकिन अगर ऐसा होता है, तो भारतीय किसानों और सहकारी समितियों को सीधा नुकसान होगा क्योंकि वे अमेरिकी कंपनियों की कम कीमत और बड़े पैमाने की प्रतिस्पर्धा का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। यही वजह है कि भारत इस टैरिफ़ को घटाने से बचता है और यही विवाद India–USA Dairy Deal की सबसे बड़ी आर्थिक अड़चन बन गया है।
5. बाज़ार पर कब्ज़े का डर
भारत और अमेरिका के बीच डेयरी व्यापार को लेकर एक और बड़ी चिंता बाज़ार पर कब्ज़े का डर है। भारत का डेयरी क्षेत्र अभी तक छोटे किसानों और सहकारी समितियों के हाथ में है, जिसने “अमूल मॉडल” जैसे उदाहरणों से आत्मनिर्भरता और ग्रामीण विकास की एक सफल कहानी लिखी है। लेकिन यदि अमेरिकी डेयरी कंपनियों को भारत के बाज़ार में बिना रोक-टोक प्रवेश मिल जाता है, तो वे अपने सस्ते और बड़े पैमाने पर उत्पादित दूध एवं डेयरी उत्पादों के दम पर धीरे-धीरे भारतीय कंपनियों और सहकारी समितियों को पीछे धकेल सकती हैं। अमेरिकी कंपनियों के पास ज़्यादा पूंजी, आधुनिक तकनीक और आक्रामक मार्केटिंग रणनीतियाँ होती हैं, जिससे वे जल्दी ही बाज़ार में बड़ी हिस्सेदारी हासिल कर सकती हैं। इससे भारतीय किसानों को न केवल अपने उत्पाद का उचित दाम नहीं मिलेगा, बल्कि भविष्य में उनके पास अपने दूध को बेचने के लिए मज़बूत स्थानीय नेटवर्क भी नहीं बचेगा। लंबे समय में इसका नतीजा यह हो सकता है कि भारत, जो आज दुनिया का सबसे बड़ा डेयरी उत्पादक देश है, अपनी घरेलू आत्मनिर्भरता खोकर विदेशी कंपनियों पर निर्भर हो जाए। यही कारण है कि बाज़ार पर कब्ज़े का डर भारतीय किसानों और नीति निर्माताओं के लिए सबसे संवेदनशील मुद्दों में से एक है।
6. पर्यावरण और पशु कल्याण की चिंताएँ
भारत और अमेरिका के बीच डेयरी व्यापार में एक और अहम मुद्दा पर्यावरण और पशु कल्याण की चिंताएँ भी है। भारत में डेयरी व्यवसाय पारंपरिक और छोटे पैमाने पर होता है, जहाँ गाय-भैंसों को अक्सर परिवार का हिस्सा माना जाता है और उनकी देखभाल मानवीय ढंग से की जाती है। वहीं, अमेरिकी डेयरी उद्योग बड़े पैमाने पर औद्योगिक फ़ार्मिंग पर आधारित है, जहाँ एक फ़ार्म में हज़ारों गायें बंदशालाओं में रखी जाती हैं। इन फ़ार्मों में गायों से ज़्यादा से ज़्यादा दूध निकलवाने के लिए हार्मोन, दवाइयों और मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पशुओं के स्वास्थ्य और कल्याण को लेकर सवाल उठते हैं। इसके साथ ही, बड़े अमेरिकी डेयरी फ़ार्म पर्यावरण प्रदूषण की गंभीर समस्या भी पैदा करते हैं। हज़ारों गायों से निकलने वाला गोबर, मीथेन गैस और गंदा पानी जल और वायु प्रदूषण को बढ़ाता है और जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। भारत में जहाँ छोटे किसान गाय के गोबर और मूत्र का उपयोग जैविक खेती और बायोगैस बनाने में करते हैं, वहीं अमेरिकी औद्योगिक डेयरी मॉडल में यह अपशिष्ट पर्यावरण के लिए बोझ बन जाता है। यही कारण है कि भारत को डर है कि अगर अमेरिकी डेयरी उत्पाद बड़े पैमाने पर यहाँ आने लगते हैं, तो न सिर्फ़ हमारे किसानों की आजीविका प्रभावित होगी बल्कि पर्यावरण और पशु कल्याण से जुड़ी नैतिक चिंताएँ भी गहराएँगी।
यानी यह डील केवल आर्थिक मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संवेदनशीलता से भी जुड़ी हुई है।
वर्तमान स्थिति (Current Status)
अभी तक डेयरी और कृषि क्षेत्रों को इस समझौते से बाहर ही रखा गया है। भारत ने कृषि और डेयरी वाले संवेदनशील क्षेत्रों को अपनी “रेड लाइन” घोषित किया है, और इन पर कोई समझौता नहीं करेगा—यह राष्ट्रीय प्राथमिकता और किसानों की सुरक्षा से जुड़ा विषय है। भारत ने WTO-संगत नॉन-टैरिफ़ बैरियर्स (NTBs) के रूप में, खासकर खाद्य सुरक्षा और सांस्कृतिक दृष्टियों से, डेयरी को संरक्षित रखने की रणनीति अपनाई है। सरकारी प्रमाणपत्र और स्वास्थ्य मानक, जैसे कि यह सुनिश्चित करना कि गायों को पशु-आधारित चारा न दिया गया हो, गेहूं-बाजारे तक अमेरिकी डेयरी उत्पादों का प्रवेश नियंत्रित कर रहे हैं। अमेरिका द्वारा भारत पर WTO मंच पर दबाव डाला गया है कि ये मानदंड “अतिरिक्त व्यापार बाधाएँ” (unscientific trade barriers) हैं, लेकिन भारत अब भी इनकी कटिबद्धता बरकरार रखे हुए है। मिनी-डील (interim trade deal) की बातचीत चल रही है, लेकिन इसमें भी पहले चरण में डेयरी शामिल नहीं होगा। दोनों पक्ष अन्य संवेदनशील क्षेत्रों पर विचार कर सकते हैं, लेकिन डेयरी को छोड़कर ही। इसके अतिरिक्त, अमेरिका ने भारतीय माल पर भारी शुल्क (टैरिफ) लागू कर दिए हैं—कुल मिलाकर 50% तक, जिसमें 25% ‘reciprocal tariff’ और 25% अतिरिक्त शुल्क शामिल है—जिससे व्यापार वार्ता और अधिक तनावपूर्ण हो गई है।
सरकार की मौजूदा स्थिति (Official Government Stance)
भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि डेयरी क्षेत्र संधि में शामिल नहीं होगा—यह एक “रेड लाइन” है, जिस पर कोई समझौता संभव नहीं है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह स्पष्ट किया है कि कृषि और डेयरी दो सबसे संवेदनशील क्षेत्र हैं, जिनके लिए बड़ी सावधानी बरती जा रही है और किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा। व्यापार मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि सरकार अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकेगी—डेयरी क्षेत्र को संरक्षित रखना प्राथमिकता है, ताकि छोटे और सीमांत किसान आर्थिक अनिश्चितता से बच सकें। सरकार ने यह भी बताया कि वे WTO-कंप्लायंट नॉन-टैरिफ बैरियर्स (NTBs)—जैसे “शाकाहारी प्रमाणन”—का उपयोग करके डेयरी क्षेत्र को संरक्षित रखेंगे। ये उपाय, खाद्य सुरक्षा और सांस्कृतिक संवेदनाओं के आधार पर लागू हैं। पड़ोसी जमात और किसान समूहों ने भी सरकार का समर्थन किया है, और चेतावनी दी है कि डेयरी और कृषि में छूट देने से स्थानीय किसानों की आजीविका को भारी नुकसान होगा।
कुल मिलाकर सरकार क्या कह रही है?
भारत सरकार की स्पष्ट नीति यह रही है कि डेयरी पेशा और कृषि क्षेत्र नागरिक प्राथमिकता है और इसे कोई भी ट्रेड समझौता खतरे में नहीं डालेगा। चाहे अमेरिका कितना भी जोर दे, भारत इन क्षेत्रों पर के तहत किसी भी रियायत के लिए तैयार नहीं है। ये क्षेत्र “नो-गो एरियाज़” हैं—जिनमें कोई समझौता नहीं होगा।
किसान संगठनों की प्रतिक्रिया और मांगें
1. भारत में कृषि और डेयरी को ट्रेड डील से पूरी तरह बाहर रखने की माँग
भारतीय किसान संगठनों ने सरकार से आग्रह किया है कि वे कृषि और परिरक्षित क्षेत्रों, विशेषकर डेयरी को, किसी भी India–USA व्यापार समझौते से दूर रखें। उन्होंने चेतावनी दी है कि अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के सस्ते (और सब्सिडी वाले) निर्यातों के भारतीय बाज़ार पर विनाशकारी प्रभाव हो सकते हैं, जिससे घरेलू मूल्य अस्थिर हो जाएंगे और किसानों की आजीविका ख़तरे में आ जाएगी।
2. खाद्य संप्रभुता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रक्षा
भारतीय समन्वय समिति, ICCFM जैसे संगठन सरकार को यह याद दिला रहे हैं कि कृषि-व्यापार सौदे में शामिल होने से खाद्य स्वराज्यता, किसानों की आजीविका और ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट में पड़ सकती है। वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ऐसी कोई भी डील जो कृषि व डेयरी को जोड़ती हो, स्वीकृत नहीं होगी।
3. व्यापक विरोध और श्रम–किसान एकता
SKM (Samyukt Kisan Morcha) सहित अनेक किसान और श्रमिक संगठन एकजुट होकर केंद्र सरकार के उस रुख़ का विरोध कर रहे हैं जो भारत को अमेरिका के दबाव में कृषि क्षेत्रों को खोलने के प्रति झुकाव दिखा रहा है। आरोप हैं कि इससे भारतीय कृषि प्रणाली को कॉर्पोरेट्स के हाथ में सौंपने की कोशिश की जा रही है। इन संगठनों ने 13 अगस्त को “Corporates Quit India Day” मनाने की घोषणाएं भी की हैं।
4. आई.पी., डिजिटल अर्थव्यवस्था के मुद्दों में संभावित उपेक्षा
50 से अधिक किसान संगठनों और नागरिक समूहों ने आगाह किया है कि यदि कृषि और डेयरी क्षेत्रों में रियायत दी जाती है, तो बौद्धिक संपदा (IP) और डिजिटल क्षेत्र जैसे संवेदनशील मुद्दे अप्रतीक्षित रूप से आगे बढ़ सकते हैं—जो जनता के हितों के खिलाफ़ हो सकते हैं।
5. MSP की कानूनी गारंटी और विरोध आंदोलनों से जुड़े अन्य मुद्दे
Sanyukt Kisan Morcha (SKM) ने न केवल कृषि और डेयरी को व्यापार सौदों से बाहर रखने की बात दोहराई है, बल्कि उन्होंने कानूनी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी की भी मांग की है, साथ ही हाल के किसान आंदोलनों के दौरान दर्ज मुकदमों को वापस लेने की मांग की है।
India–USA Trade Deal पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)
1. India–USA Trade Deal क्या है?
यह एक प्रस्तावित व्यापार समझौता है जिसके ज़रिए भारत और अमेरिका अपने-अपने बाज़ार एक-दूसरे के लिए खोल सकते हैं। इसमें डेयरी, कृषि, दवा, डिजिटल और अन्य सेक्टरों में सहयोग और आयात–निर्यात शामिल हो सकता है।
2. भारतीय किसानों को इससे चिंता क्यों है?
किसानों का कहना है कि अगर अमेरिका से सस्ता डेयरी और कृषि उत्पाद भारत में आने लगे, तो छोटे किसानों और सहकारी संस्थाओं (जैसे अमूल) पर बड़ा दबाव पड़ेगा। इससे उनकी आमदनी घट सकती है और रोज़गार संकट में आ सकता है।
3. धार्मिक और सांस्कृतिक समस्या क्या है?
भारत में डेयरी सिर्फ़ कारोबार नहीं बल्कि संस्कृति और धार्मिक आस्था से जुड़ा है। अमेरिकी डेयरी उत्पादों के उत्पादन में गायों से जुड़ी ऐसी प्रक्रियाएँ हो सकती हैं जो भारतीय भावनाओं से मेल नहीं खातीं। इसी कारण इसे लेकर विवाद बढ़ सकता है।
4. क्वालिटी और सेफ़्टी मानक को लेकर चिंता क्यों है?
भारतीय किसान संगठनों का कहना है कि अमेरिका के डेयरी उत्पादों में हार्मोन और एडिटिव्स का इस्तेमाल होता है, जबकि भारत में इनके लिए सख़्त नियम हैं। इससे उपभोक्ताओं की सेहत और फूड सेफ़्टी पर असर पड़ने की आशंका है।
5. छोटे किसानों पर सबसे बड़ा असर क्यों पड़ेगा?
भारत में लाखों छोटे किसान सिर्फ़ 2–5 गाय पालकर परिवार का ख़र्चा चलाते हैं। अगर बाज़ार में बड़े पैमाने पर सस्ता अमेरिकी दूध और उत्पाद आ गए, तो इन छोटे किसानों की आय में सीधी गिरावट होगी।
6. पर्यावरण और पशु कल्याण की क्या चिंताएँ हैं?
अमेरिका की इंडस्ट्रियल फार्मिंग में बड़े पैमाने पर मशीनीकरण और पशु प्रबंधन होता है, जिसे लेकर पर्यावरण और पशु कल्याण पर सवाल उठते हैं। भारत में पारंपरिक डेयरी खेती पर्यावरण और पशुओं के प्रति अधिक संतुलित मानी जाती है।
7. किसान संगठन इस डील का विरोध क्यों कर रहे हैं?
किसान यूनियनों (जैसे SKM, ICCFM) का कहना है कि कृषि और डेयरी को इस ट्रेड डील से पूरी तरह बाहर रखा जाए। उनका मानना है कि यह डील किसानों की आजीविका और भारत की खाद्य स्वराज्यता (Food Sovereignty) के लिए खतरा बन सकती है।
8. सरकार का इस विषय पर क्या रुख़ है?
भारत सरकार ने कहा है कि किसी भी समझौते में देश के किसानों और उपभोक्ताओं के हितों को प्राथमिकता दी जाएगी। फिलहाल सरकार डेयरी सेक्टर को इस डील में शामिल करने को लेकर सतर्क है।
9. अमेरिका को इससे क्या फायदा है?
अमेरिका के पास दूध और डेयरी उत्पादों का अधिशेष उत्पादन है। वे चाहते हैं कि इसे भारत जैसे बड़े उपभोक्ता बाज़ार में बेचा जाए। इससे उन्हें अपने किसानों को राहत और मुनाफ़ा मिलेगा।
10. अगर यह डील साइन होती है तो भारत पर क्या असर पड़ेगा?
अमेरिकी डेयरी उत्पाद भारत में आ सकते हैं।
किसानों की आमदनी पर दबाव होगा।
उपभोक्ताओं को सस्ता विकल्प मिल सकता है लेकिन सेफ़्टी और सांस्कृतिक मुद्दे सामने आएँगे।
सहकारी मॉडल (जैसे अमूल) को चुनौती मिल सकती है।
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